देहरादून जैसे शहर में वाहनों की संख्या तो बढ़ रही है, लेकिन उनकी रफ्तार कम होती जा रही है.
देहरादून: जिस तेजी के साथ राजधानी देहरादून की आबादी बढ़ रही है, उसी हिसाब से वाहनों की संख्या भी बढ़ती जा रही है. वाहनों की संख्या बढ़ने के साथ ही शहर में ट्रैफिक जाम भी बढ़ता जा रही है. देहरादून में एक तरफ जहां सड़कों पर वाहनों की संख्या बढ़ रही है तो वहीं दूसरी तरफ ट्रैफिक मैनेजमेंट फोर्स में लगातार कमी देखी जा रही है.
कभी शांत आबोहवा के लिए जाना-जाने वाला देहरादून शहर अब ट्रैफिक जाम के फंसता जा रहा है. शहर के मुख्य चौराहों और सड़कों पर सुबह-शाम वाहनों की जाम में फंसी हुई लंबी-लंबी लाइन देखने को मिल जाएगी. इसके पीछे के बड़ा कारण एक तो शहर में वाहनों की बढ़ती संख्या और दूसरा उस हिसाब से ट्रैफिक मैनेजमेंट न होना. क्योंकि देहरादून शहर अभी भी ट्रैफिक मैनेजमेंट पुराने ढर्रे पर ही चल रहा है.
देहरादून आरटीओ (Regional Transport Office) कार्यालय के आंकड़ों पर गौर करें तो बीते चार साल में शहर की सड़कें ट्रैफिक से ओवरलोड होती हुई नजर आ रही है. बीते साल यानी 2024 की ही बात करें तो देहरादून आरटीओ में छोटे-बड़े मिलाकर करीब 80 हजार से ज्यादे वाहनों का रजिस्ट्रेशन हुआ हैं.
जानिए बीते चार साल में देहरादून में कितने वाहनों के रजिस्ट्रेशन हुए
साल | बस | टू व्हीलर | कार | ई रिक्शा | कुल वाहन |
2020 | 253 | 31164 | 13463 | 89 | 47388 |
2021 | 39 | 35915 | 16191 | 243 | 55000 |
2022 | 79 | 47182 | 19127 | 898 | 71772 |
2023 | 317 | 51358 | 21081 | 1018 | 80986 |
2024 | 428 | 56676 | 22644 | 600 | 87308 |
आंकड़ों पर गौर करें तो साल 2022 में जहां कुल 46000 वाहनों का रजिस्ट्रेशन हुआ तो वहीं साल 2024 में ये आंकड़ा बढ़कर 86 तक पहुंच गया. देहरादून आरटीओ संदीप सैनी भी मानते हैं कि राजधानी में लोगों के खर्च करने की क्षमता लगातार बढ़ रही है. इसके साथ ही देहरादून की आबादी भी बड़ी तेजी से बढ़ी है, जिससे वाहनों की खरीदारी भी दोगुना रफ्तार से हुई है. लेकिन सड़कों की स्थिति वैसे की वैसी हैं. यदि लोग ट्रैफिक जाम से निजात पाना चाहते हैं तो उसके लिए जरूरी है कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट को ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल किया जाए

देहरादून में ट्रैफिक जाम की एक बड़ी समस्या ये भी है कि जहां एक तरफ वाहनों की संख्या बढ़ रही है तो वहीं दूसरी तरफ से ट्रैफिक पुलिस की संख्या में कमी आ रही है, जिससे ट्रैफिक मैनेज नहीं पा रहा है. देहरादून एसपी सिटी से मिली जानकारी के अनुसार हर साल शहर में ट्रैफिक कर्मियों की संख्या में लगातार गिरावट आ रही है.
- साल 2017 में ट्रैफिक कर्मियों की संख्या 351 थी
- साल 2018 में घटकर 332 पर पहुंच गई.
- साल 2019 में घटकर 319.
- साल 2020 में घटकर 270.
- साल 2021 में घटकर 240 हुई.
- 2022 में 283 हुई.
- 2023 में 254 हो गई.
- बीते साल 2024 में देहरादून शहर में ट्रैफिक कर्मियों की संख्या 269 रह गई है.
- इसमें से भी केवल 50 प्रतिशत ट्रैफिक पुलिसकर्मी ग्राउंड पर रहते है.
बढ़ गए ट्रैफिक प्वाइंट: इस समय शहर में ट्रैफिक पुलिस और सिटी पेट्रोलिंग यूनिट (CPU) कुल मिलाकर ट्रैफिक पुलिस कर्मियों की संख्या 269 हैं, जो शहर का ट्रैफिक मैनेजमेंट कर रहे हैं. इसमें ऑफिस स्टाफ, क्रेन संचालक, ड्रोन संचालक और कंट्रोल रूम में कैमरे की मॉनिटरिंग करने वाले कर्मी भी शामिल है. कुल मिलाकर कहा जाए तो 50 प्रतिशत स्टाफ ही ग्राउंड पर काम करता है.
बीते चार सालों में शहर में ट्रैफिक पॉइंट (एक ऐसा स्थान है जहां यातायात को नियंत्रित और निर्देशित किया जाता है) तो बढ़ गए, लेकिन स्टाफ कम हो गया, जो शहर में ट्रैफिक जाम का बड़ा कारण बनता जा रहा है. ट्रैफिक पुलिस के मुताबिक देहरादून शहर में साल 2017-18 में ट्रैफिक पॉइंट की संख्या केवल 33 थी, जो अब साल 2025 तक बढ़कर करीब 72 हो गई है. कुल मिलाकर कहा जाए तो शहर में 72 ऐसे ट्रैफिक पॉइंट है, जहां पर अमूमन हेवी ट्रैफिक होता है. यानी वहां पर कर्मचारी की ड्यूटी लगाई जानी बेहद जरूरी हो जाती है.

देहरादून मेट्रो का काम ठंडे बस्ते में: देहरादून शहर में ट्रैफिक के बढ़ते दबाव का कम करने और लोगों की सहूलियत को ध्यान में रखते हुए साल 2017 में तत्कालीन त्रिवेंद्र सरकार ने देहरादून मेट्रो रेल प्रोजेक्ट पर विचार किया गया था. कई सालों तक इस प्रोजेक्ट पर करसत भी गई. कई करोड़ रुपए लगातार डीपीआर तैयार की गई. इसके बाद उस डीपीआर को अप्रूवल के लिए साल 2021 में भारत सरकार को भेजा गया, लेकिन अभी तक भारत सरकार ने इस पर कोई निर्णय नहीं लिया. कुल मिलाकर कहां जाए तो देहरादून मेट्रो का प्रोजेक्ट फिलहाल ठंडे बस्ते में पड़ा है. यदि इस प्रोजेक्ट को स्वीकृति मिलती है तो देहरादून में काफी हद तक लोगों की ट्रैफिक की समस्या से निजात मिलेगा.
उत्तराखंड मेट्रो के एमडी जितेंद्र त्यागी बताते हैं कि सरकार अपने खर्चे पर मेट्रो प्रोजेक्ट को उतारने के लिए दो अलग-अलग फाइनेंशियल मॉडल को लेकर विचार कर रही है और यह दोनों अलग-अलग फाइनेंशियल मॉडल उत्तराखंड शासन को अप्रूवल के लिए भेजे गए हैं. शासन में नियोजन से तो अप्रूवल मिल गया है, लेकिन अभी इस पर फाइनेंशियल स्वीकृति मिलना बाकी है, जिसके बाद कैबिनेट में उत्तराखंड मेट्रो प्रोजेक्ट पर फाइनल मोहर लगेगी.